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Prana Mudra/प्राण मुद्रा के विधि और लाभ !!


Prana Mudra

Prana Mudra

प्राण मुद्रा के विधि और लाभ !

प्राण मुद्रा के विधि

1. पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी रखें |

2. अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें, हथेलियाँ ऊपर की तरफ रहें |

3. हाथ की सबसे छोटी अंगुली (कनिष्ठा) एवं इसके बगल वाली अंगुली (अनामिका) के पोर को अंगूठे के पोर से लगा दें |

सावधानियां

1. प्राण मुद्रा से प्राणशक्ति बढती है यह शक्ति इन्द्रिय, मन और भावों के उचित उपयोग से धार्मिक बनती है। परन्तु यदि इसका सही उपयोग न किया जाए तो यही शक्ति इन्द्रियों को आसक्ति, मन को अशांति और भावों को बुरी तरफ भी ले जा सकती है। इसलिए प्राणमुद्रा से बढ़ने वाली प्राणशक्ति का संतुलन बनाकर रखना चाहिए।

मुद्रा करने का समय व अवधि

1. प्राण मुद्रा को एक दिन में अधिकतम 48 मिनट तक किया जा सकता है। यदि एक बार में 48 मिनट तक करना संभव न हो तो प्रातः, दोपहर एवं सायं 16-16 मिनट कर सकते है।

चिकित्सकीय लाभ

1. प्राण मुद्रा ह्रदय रोग में रामबाण है एवं नेत्रज्योति बढाने में यह मुद्रा बहुत सहायक है।

2. इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से प्राण शक्ति की कमी दूर होकर व्यक्ति तेजस्वी बनता है।

3. प्राण मुद्रा से लकवा रोग के कारण आई कमजोरी दूर होकर शरीर शक्तिशाली बनता है |

4. इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से मन की बैचेनी और कठोरता को दूर होती है एवं एकाग्रता बढ़ती है।

आध्यात्मिक लाभ

1. प्राण मुद्रा Prana Mudra को पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर करने से शक्ति जागृत होकर ऊर्ध्वमुखी हो जाती है, जिससे चक्र जाग्रत होते हैं एवं साधक अलौकिक शक्तियों से युक्त हो जाता है ।

2. प्राण मुद्रा में जल, पृथ्वी एवं अग्नि तत्व एक साथ मिलने से शरीर में रासायनिक परिवर्तन होता है जिससे व्यक्तित्व का विकास होता है।

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